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Thursday 27 June 2013

Today's Thought

EK Vichar

Moral Story in hindi






मूल्यवान

एक सेठजी बहुत धनी थे, लेकिन अत्याधिक कंजूस भी थे. एक दिन उन्हें सुबह अँधेरे ही  कहीं बाहर जाना था.

जब सेठ घर से बहुत दूर आ गए, तब उन्हें याद आया कि वह घर में एक दीपक जलता हुआ छोड़ आये हैं. उन्हें लगा घर का कोई न कोई सदस्य दीपक  बुझा ही देगा, लेकिन फिर  सोचा कि यदि किसी ने दीपक  न बुझाया तो तेल व्यर्थ खर्च होगा। यह सोच कर सेठ बीच रास्ते से लौट पड़े.

घर आकर देखा कि  दीपक बुझा हुआ था. सेठ ने पूछा - " दीपक किसने बुझाया ?"
" मैंने बुझाया."  बहू ने कहा।

" दीपक बुझाने में अवश्य तुमने  तेल बर्बाद कर दिया होगा ? " सेठजी ने शंका प्रकट की.

" नहीं, मैंने एक छोटे से तिनके से दीपक बुझाया और तेल बर्बाद न हो इसलिए वह तेल में भीगा तिनका भी दीपक में डाल दिया. लेकिन पिताजी आप थोड़ा सा तेल बचाने के लिए इतनी दूर से वापस लौटे, तेल की कीमत से अधिक तो आपके जूते ही घिस गए होंगे."  बहू ने हंसते हुए कहा .

सेठ जी ने गर्व मिश्रित स्वर में कहा - " नहीं, वापस लौटते समय मैंने जूते उतार कर हाथ में ले लिए थे, भले ही मेरे पैरों में छाले पड़ गए। "

" पिताजी, आपको मालूम ही नहीं कि क्या बचाना है और क्या खर्च करना है. जूते जैसी मामूली वस्तु के लिए आपने अपने बहुमूल्य पैरों को घायल कर डाला." बहू ने दुःख भरे स्वर में कहा .

ज़िंदगी की सीख : अधिकाँश व्यक्तियों को उम्र के अंतिम पड़ाव में समझ आता है कि जीवन संघर्ष में जी-जान लगा कर जो बचाया वह मूल्यवान न था।